
नई दिल्ली: इजरायल और ईरान के बीच लगातार बढ़ रहे सैन्य संघर्ष, जिसमें अमेरिका के भी शामिल होने की खबरें आ रही हैं, ने वैश्विक तेल बाजार में भारी अनिश्चितता पैदा कर दी है। इसी संभावित अस्थिरता के मद्देनजर, भारत ने अपनी कच्चे तेल की खरीद रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। दरअसल, जून महीने में भारत ने रूस और अमेरिका से कच्चे तेल का आयात तेजी से बढ़ाया है, जो उसके पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं, सऊदी अरब और इराक से भी अधिक हो गया है।
बदलती भू-राजनीतिक स्थिति और भारत की प्रतिक्रिया
मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव ने ऊर्जा सुरक्षा को लेकर नई चिंताएं पैदा कर दी हैं। विशेष रूप से, ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकियों ने वैश्विक तेल आपूर्ति को बाधित करने की आशंका को बढ़ा दिया है। यह जलडमरूमध्य दुनिया के कुल तेल शिपमेंट का लगभग 20% और भारत के लगभग 40% तेल आयात को संभालता है। लिहाजा, भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है, ने अपनी आपूर्ति श्रृंखला को और अधिक लचीला बनाने का फैसला किया है।
रूस और अमेरिका से बढ़ा आयात
ग्लोबल ट्रेड एनालिटिक्स फर्म केपलर के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, जून में भारतीय रिफाइनरियां प्रतिदिन 2-2.2 मिलियन बैरल रूसी कच्चे तेल का आयात कर सकती हैं। यह आंकड़ा पिछले दो सालों में सबसे अधिक है और इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत जैसे पश्चिमी एशियाई देशों से कुल आयात को भी पार कर गया है। इसके अतिरिक्त, अमेरिका से भी तेल आयात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो जून में 439,000 बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया है, जबकि पिछले महीने यह 280,000 बैरल प्रतिदिन था।https://kainchinews.in/israel-iran-conflict-240-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%8c%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a5%80/
रणनीतिक लचीलापन और भविष्य की तैयारी
भारत की यह बदली हुई रणनीति भू-राजनीतिक तनावों के बीच अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीतिक कदम है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही भारत ने रूसी तेल आयात को काफी बढ़ा दिया था, और अब यह अपने कुल तेल आयात का 40-44% तक पहुंच गया है, जो पहले 1% से भी कम था। यह विविधता भारत को किसी भी एक क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता से बचने में मदद करती है और उसे वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव से निपटने की क्षमता प्रदान करती है। कुल मिलाकर, भारत अब केवल किफायती कीमत ही नहीं, बल्कि आपूर्ति की विश्वसनीयता पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है, ताकि किसी भी अप्रत्याशित बाधा का सामना किया जा सके।
