
टीम कैंची, दिल्ली: जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड Trump ने दुनिया भर के देशों पर टैरिफ़ लगाया, तो चीन ने इसका सबसे मुखर होकर जवाब दिया. अप्रैल, 2025 में अमेरिका और चीन के बीच तनाव इस कदर बढ़ गया था कि अमेरिका ने चीन पर 145% और चीन ने अमेरिका पर 125% टैरिफ़ लगा दिया था. बाद में, जिनेवा में हुई बातचीत के बाद इन टैरिफ़ में कमी की गई, लेकिन अब भारत 50% अमेरिकी टैरिफ़ का सामना कर रहा है. ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि भारत ने चीन की तरह जवाबी कार्रवाई क्यों नहीं की? इसके पीछे कई अहम वजहें हैं.
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1. जवाबी कार्रवाई से भारत को ही नुकसान होगा
पूर्व भारतीय राजदूत (डब्ल्यूटीओ) जयंत दासगुप्ता के मुताबिक, अमेरिका से भारत जो सामान आयात करता है, उनमें से ज़्यादातर कच्चे माल और इंटरमीडिएट उत्पाद होते हैं. इनमें खनिज ईंधन, तेल, हीरे, मशीनरी, ऑर्गेनिक केमिकल्स और प्लास्टिक शामिल हैं. अगर भारत इन पर टैरिफ़ लगाता है, तो इससे न सिर्फ़ घरेलू बाज़ार बल्कि निर्यात पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा. साथ ही, इससे भारत के अहम सर्विस सेक्टर को भी नुकसान पहुंच सकता है.
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2. दुर्लभ खनिजों की कमी
चीन के पास रेयर अर्थ मिनरल्स जैसा एक बड़ा हथियार है, जिससे वह अमेरिकी टेक्नोलॉजी और डिफेंस सेक्टर को प्रभावित कर सकता है. भारत के पास ऐसा कोई रणनीतिक उत्पाद नहीं है. द भूटनीज़ अख़बार के संपादक तेनज़िंग लामसांग बताते हैं कि भारत के निर्यात भी ऐसे नहीं हैं, जिन्हें आसानी से बदला न जा सके. दूसरे देश आसानी से भारत के निर्यात बाज़ारों पर कब्ज़ा कर सकते हैं. इसलिए, भारत के लिए कूटनीति और घरेलू अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने का रास्ता ही ज़्यादा फ़ायदेमंद है.

3. ट्रंप के गुस्से का खतरा
अगर भारत अमेरिका पर जवाबी टैरिफ़ लगाता, तो ट्रंप के गुस्से का ख़तरा बढ़ जाता. आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के सुजान हाजरा का मानना है कि भारत को अलग-थलग करने की अमेरिका की नीति को देखते हुए जवाबी कार्रवाई सिर्फ़ प्रतीकात्मक होती. तेनज़िंग लामसांग भी इस बात से सहमत हैं कि ट्रंप भारत पर और अधिक टैरिफ़ लगा सकते थे. भारत अमेरिका को जितना निर्यात करता है, उससे कहीं कम आयात करता है. ऐसे में, टैरिफ़ की लड़ाई भारत के लिए घाटे का सौदा साबित होती.
4. आईटी सेक्टर पर निर्भरता
भारत का आईटी सेक्टर अमेरिका पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक जी. चोक्कालिंगम का कहना है कि भारत का आईटी निर्यात लगभग 140 अरब डॉलर का है, जिसमें से 54.7% यानी करीब 109.4 अरब डॉलर का निर्यात सिर्फ़ अमेरिका को होता है. अगर भारत जवाबी टैरिफ़ लगाता, तो अमेरिका आईटी सेवाओं पर भी जवाबी कार्रवाई कर सकता था, जिससे भारतीय आईटी उद्योग को भारी नुकसान होता.
इन सभी वजहों को देखते हुए, भारत ने जवाबी टैरिफ़ के बजाय कूटनीति और व्यापारिक समझौतों पर ध्यान केंद्रित करने का फ़ैसला किया, ताकि अमेरिकी टैरिफ़ के नकारात्मक असर को कम किया जा सके.
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